Sunday 12 February 2012

अमीर खुसरो -५

अमीर खुसरो -५
तो मित्रों हो जाय अमीर खुसरो पर कुछ बात चीत
दिल्ली की भाषा उनके रक्त में माँ के दूध की तरह संचरित हो रही थी ,उनकी हिंदी देहलवी अर्थात कड़ी बोली का प्रारंभिक रूप ,मैंने बताया था की उनकी एक पुस्तक खालिक-बारी का उल्लेख मिलता है ,खान -ये -आरजू में भी इसका उल्लेख है,किन्तु कुछ लोग इसे प्रमाणिक नहीं मानते,,पर हम मानते हैं , खुसरो संगीत के भी जानकर थे ,वे सूफी थे ,जो गीत ,बसंत ,झूला ,सावन ,आदि से सम्बंधित है वह संगीत निबद्ध है ,हमने आप को पहेलियाँ और मुकरियों का भी अंतर बताया था .आज पहेलियाँ .
१-मुह खोले जब तिरिया आई ढीले हो गए सभी सिपाही
कोई सोना लेने जाता वह सोना आप ही आता /
२-सोने में जो देखी बात सूझे और रूप के साथ
व्यान किया जब मिल कर चार नै तरह से दिया विचार /(दोनों का उत्तर सपना ,ख्वाब )
३- सेत बरन देखी एक नारी पी के विरोग पड़ी विचारी
नक़सुक सों निकसत यक अंग प्राण गए प्रीतम के संग /(सांप केंचुली वाला )
४- गला कटे वो चूँ न करेऔर मुंह रक्त बहाय
सो प्यारी बातें करे फ़िक्र कथा दिख लाय / (पान)
मित्रों खुसरो हमारी जमीनी हकीकत रहनुमा था ,लोक का पैरोकार था,बोली भाषा का मुरीद था ,भारतीयता का पुजारी था ,जितना भी लिखा जय कम होगा/उन्हें दिल्ली छोड़ कर जाना पडा/वे हैदर बाद चले गए /हैदर बाद के लोंगो ने उन्हें सर आँखों पर बिठाया ,वहीँ रहने लगे ,उन्ही की बोली दक्खिनी हिंदी के नाम से जानी जाती है ,वे अरबी फ़ारसी और भारतीय बोलियों के जानकर थे पर लिखते देव नगरी और फ़ारसी में थे /उर्दू का जन्म बाद में हुआ /

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