पथ सभी का हो प्रकाशित दीप कुछ ऐसे जलना
लोक की माटी रसीली स्नेह की रसगंध धारा
ज्ञान की गरिमा विवेकी प्रीति की बाती लगाना
दीप प्रिय ऐसे जलना |
आस्थाएँ जाग उठें फिर जीत की आस्वश्ति जागे
इंद्र धनुषी राग भरो की संशयों का तिमिर भागे
शक्ति की अभ्यर्थना मे शक्तीकी थाती लगाना
दीप तुम ऐसे जलाना |
रीति की सुरभित रंगोली अर्चना की अल्पना हो
राष्ट्र की समृद्धि जागे दूर गामी कल्पना हो
शंख ध्वनि से कर निनादित कीर्ति के पल्लव लगाना
दीप प्रिय ऐसे जलना |
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