Friday, 30 November 2012

जैसी सुबहो शाम परिंदों की होती है .......

  1. .जैसी सुबहो शाम परिंदों की होती है .......

    .काश वैसे ही हमारी होती



    रोज सूरज निकलने के साथ

    नये जीवन की शुरुआत

    रोज सूरज डूबने के साथ

    चिताओं का अंत

    मन होता तो आकाश मे उड़ते

    मन होता घोसले मे सोते

    रोज नया घोसला बनाते



    रोज नई दुनिया हम बसाते .

    नये मीत हम रोज बनाते

    रोज नया हम गाना गाते

    मन होता आकाश मे उड़ते

    मन होता धरती पर चुगते

    नही किसी से होता बैर

    नही मानते किसी को गैर

    सारी धरती अपनी होती

    जहाँ हमारा अपना होता

    सूरज चंदा अपने होते

    ना होता अपना भगवान

    न होती कोई झूठी शान

    हर डाली पर रोज फुदकते

    मन माना हम जीवन जीते.

2 comments:

  1. अच्छी लगी आपकी उन्मुक्त उड़ान की चाह :)

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  2. थैंक्स ..शुक्रिया .अनुपमा

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