उषा पीसती नेह जतन से
जांत चले भिनसारे
भोर लीपती रच रच आँगन
पूरे चौक उजारे .
मूसल छांटे बिपति दुपहरी
ओखली धरी ओसारे .
साँझ झोंकती थकी जवानी
चूल्हे में सिर डारे .
आधी रात बदलती करवट
आँख समय बिरुआरे .
चेहरे पर चौरासी झुर्री
मईया ठाढ़ दुआरे .
लाले लाले गोड़ कनईया
आँखें सपना बुनतीं .
काल कलौती उज्जर धोती
मंशा चुनती मोती,
जांत चले भिनसारे
भोर लीपती रच रच आँगन
पूरे चौक उजारे .
मूसल छांटे बिपति दुपहरी
ओखली धरी ओसारे .
साँझ झोंकती थकी जवानी
चूल्हे में सिर डारे .
आधी रात बदलती करवट
आँख समय बिरुआरे .
चेहरे पर चौरासी झुर्री
मईया ठाढ़ दुआरे .
लाले लाले गोड़ कनईया
आँखें सपना बुनतीं .
काल कलौती उज्जर धोती
मंशा चुनती मोती,
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