जीत भी हूँ हार भी हूँ
प्यार भी संताप भी हूँ
मैं तुम्हारा मीत भी हूँ
मैं तुम्हारा गीत भी हूँ
मैं तुम्हारी कल्पना हूँ
मैं तुम्हारी अल्पना भी
मैं तुम्हारे राग का सुर हूँ
मधुर अनुराग का गुर हूँ
तुम्हारी प्रीत मे हूँ मैं
तुम्हारी रीति मे हूँ मैं
दीप हूँ, सघर्ष का मैं उद्धरण हूँ।।
जो कभी रुकता नहीं,
मैं वो चरण हूँ।। ...
है अन्धेरा खूब लेकिन मैं जलूँगा।
जब तलक हो ना उजाला, मैं डटूंगा।
जो कहा, उसको किया
वो आचरण हूँ।।
लोग मिल कर के अँधेरे को हरेंगे.
एक दिन हम जीत को बेशक वरेंगे.
आप हैं पुस्तक ,
मैं उसका आवरण हूँ।।
दीप हूँ, सघर्ष का-
मैं उद्धरण हूँ।।
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