Friday 30 November 2012

मुझे गीत लिखने की आदत नहीं है

मुझे गीत लिखने की आदत नहीं है

जब भी मैं धसता हूँ दूर तलक जीवन में

मेरी देहरी पर

गीत खुद ही देते हैं

दस्तक,

जैसे

अखबार देने के लिए हर सुबह

हाकर मुझको जगाता है.

लोहे की बल्गा के कसैले स्वाद को चुबुलाते

तांगेमें जुते घोड़े की तर्ज पर

दम साधते कदम लडखडाते

हांफते कंहरते

चले आते हैं गीत मेरी चौखट पर

सांकल बजाने.ठीक उसी तर्ज पर

जैसे दूध वाला हर रोज आकर
साइकल की घंटी बजाकर मुझको बुलाता है .

मुझे दर्द से इनके हमदर्दी तो है

मगर शब्द देना मेरे बस में नहीं

पीड़ा से लबालब मेरा अंतस मानस

किसी सूखे कूंएं में तब्दील हो गया है

पीड़ा को प्रति क्षण मैंने जिया तो है

किसी दूध पीते बच्चे की लय

साँस रोके गटागट पिया है पर भी

पीड़ा के चरम को छंद बद्ध करना

अभी भी मेरी छटपटाहट है .

मैं इसी पीड़ा में धंसा जा रहा हूँ .

छिटक कर दूर भागना मेरी फितरत नहीं
मुझे गीत लिखने की आदत नहीं ......

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