Friday, 30 November 2012

किसी ने सुना ही नहीं.

किसी ने सुना ही नहीं.

इधर कुछ दिनों से मैंने

पत्नी से पानी मागना बंद कर दिया है .

कार्यालय आते या जाते समय नहीं करता

प्रतीक्षा की वह गेट तक आयेंगी .

मुझमे बहुत कुछ बदल गया है

जरूरत के हिसाब से अपना कं खुद करलेता हूँ .

खोज लेता हूँ अपने जूते और मोज़े ,

भूख लगने पर टेबल से

ब्रेकफास्ट ,लंच ,या डिनर खुद ले लेता हूँ .

नेह से भोजन कराने की कला

मेरी पत्नी भूल चुकी हैं .

कभी यही सब कुछ करना उन्हें

सौभाग्य का प्रतीक लगता था .

परन्तु अब यह सब कुछ शोषण लगता है

अच्छी भली और प्रसन्न रहने वाली

खिल- खिला कर हसने वाली मेरी पत्नी

अब कुंठित और रुग्न तथा गुमसुम रहने लगी है .

बड़ी होती बिटिया गुर्राने लगी है

इसलिए पूंछना छोड़ दिया

कहाँ गई थी कहाँ जा रही हो .

वह अचानक दक्ष हो गई है

कुछ भी पूछो तो पुरुष का हस्तक्षेप समझती है .

उसने माँ को भी सिखादिया है

आधुनिक नारी के अधिकार .

अहम् बात यह है की मै चुप रहने की कोशिश करता हूँ.

दिन चर्या में फर्क आगया है .

बात यह नहीं की मेरा कद घट गया है

चादर देख कर मै खुद ही सिमट गया हूँ .

मै समझने लगा हूँ की बिना कुछ कहे मर गया

कहा जाना अधिक गवरौशाली है

यह कहे जाने से..कि

कुछ कह रहा था किसी ने सुना ही नहीं.

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