Wednesday 19 December 2012

अच्छा बननाशेष रह गया .


अच्छा बननाशेष रह गया .


मै उतना अच्छा आदमी नहीं निकला

जितनी की मुझे उम्मीद थी कि मै हो पाउँगा

कई बार अच्छा बनाने कि कोशिश में सारी अच्छाई झर जाती है

और अच्छा बनाना फिर भी शेष रह जता है

मुझे भरोषा तो था लेकिन जाहिर है

मैंने उतनी कोशिश नहीं कि जितनी कि जरूरत थी



मुझे अपने बच्चों कि पढ़ी लिखाई  का जादा तो नहीं

पर इतना अता पता तो रहा कि वे किस दर्जे में पढ़ते हैं

मैंने उन्हें बहुत सलाह नहीं दी और नसीहत या उपदेश भी नहीं

पर उन्हें साफ सफाई से जीवन बसर करना ,किसी पर निर्भर न रहना

अपना काम  खुद करना,किसी के आगे  सर न झुकना ,किसी का एहसान न लेना 

,भरसक मददगार होना,अपने पद ,पोजीशन का नजायज फायदा न उठाना
 वगौरह वगैरह तो आ ही गया /

उनकी अपनी मुश्किलें हैं ,तो मेरी ही कौन सी कम हैं

एक अच्छा पिता ,उन्हें अवसर का लाभ उठाने आज कि दुनिया में

अपना कम निकालने कि कुछ हिकमतें तो बता ही सकता था

जो मैंने नहीं किया क्यों कि -

बासठ बरस कि उम्र हो जाने के बाद भी

मुझे खुद ही पता नहीं है कि

हमारे समय में जिन्दगी जी कैसे जाती है .

सिर्फ इतना ही समझ पाया कि कैसे

जुटाया जाता है ,छत छप्पर जगह और रहत का सामान .

नहीं समझ पाया कि कैसे खादी कि जाती हैं दीवारें ,तोड़े जाते हैं रिश्ते .

क्या होता है चरित्र का छल ,कैसे बनाया जता है घर को बाजार

इस मायने में पूरा राज कपूर ही रहा -

.मेरे बच्चों ! अगर तुम सफल नहीं होते तो इसका जिम्मा मेरा जरूर होता

  हला की आज तुम मुझ पर निर्भर नहीं हो .

जिन्दगी तुम्हारे साथ कल क्या करेगी इस बारे में मैं कोई अटकल लगना नहीं चाहता

पर अगर मैं  अच्छा होता ,तो तुम्हे इतना अबोध न छोड़ता

जितना मैंने तुम्हे शायद इस खूंखार वक्त में छोड़ दिया है

तभी तो चालक चालों की शरारत ने तुम्हे आमूल चूल बदल दिया है

,तुम वो नही रह गए जो मैंने बनाना चाहा था
हालाँकि तुम सब अब भी मेरी प्यारी संताने हो

 मैं और तुम्हारी माँ  तुम्हे बेहद प्यार करता हूँ 
.
मैं अच्छा पिता तो नहीं बन सका तो अच्छा इन्सान बनाने का तो सवाल ही नहीं उठाता

चूक मुझसे कहीं वफादारी में भी हुई है ,शायद अपने लालच में

मैंने सोचा कि कई जगहें हैं ,हो सकती हैं ,और एक जगह दूसरी को रद्द नहीं करती

मुझे ख्याल तो था कि दुनिया के इतने विशाल होने के बावजूद जगहें बहुत कम ही हैं

जिसे जितनी मिली है उसी पर जम कर काबिज है

और इसकी मोहलत नहीं कि आप जगहों के बीच आवा जाही करते रहें .

मैंने प्रेम ,बांटा नहीं बल्कि पाया कि यह एक ओर बढ़ने से

दूसरी ओर कमतर नहीं होता बढ़ता ही है
 

 आसमान कि तरह एक शून्य बना रहता है जिसे कई कई सूरज भरते रहते हैंरंग

उन्ही कि धूप में मैं खिलाता और कुम्हिलाता  रहा .

मैंने जीवन और कविता को आपस में उल्झादिया

जीवन की कई सच्चाइयों और सपनो को कविता में ले गया

आश्वश्त हुआ कि जो शब्दों में है वह बचा रहेगा कविता में .

भले ही जीवन में नहीं....,गलती यह हुई .

जो कविता में हुआ उसे जीवन में हुआ मान  कर संतोष करता रहा .

अपने सुख और दुःख को अपने से बड़ा मनाकर

दूसरों के पास उसे शब्दों में ले जाने कि कोशिश में वे सब बदल गए और मैं  भी

और जो कुछ पंहुचा शायद नमैं  था न मेरे सुख दुःख 

,मुझे ठीक से पता ही नहीं था कि

हमारे समय में अच्छे दोस्त ही सच्चे दुश्मन होते हैं

अपने ही पक्के पराये .क्यों कि औरों को आप या आप कि

जिन्दगी में दखल देने कि फुर्सत कहाँ है



कभी कभार के भावुक विष्फोट के अलावा किसी से अपने दुःख का सज्खा नहीं किया

न मदद मांगी न शक किया ,गप्पबाजी में ही मन के शक को बह जाने दिया

कुछ शोहरत ,खासी बदनामी मिली ,पर बुढ़ापे के लिए ,अपने लिए ,

मुश्किल वक्त के लिए ,कुछ बचाया और जोड़ा नहीं .

किसी दोस्त ने कभी ऐसा करने कि गंभीर सलाह भी नहीं दी

इसी आपा धापी में किसी कदर आदमी बनाने कि कोशिश में

बासठ बरस गुजर गये पर अच्छा बनाना शेष रह गया

अब तो जो होना था हो गया

दल के पक्षी अचानक उड़ गए सब फुर्र से

बया बेचारा अकेला रहा गया ,घोसले के द्वार पर लटका हुआ /

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