Thursday, 13 December 2012

सर्वे भवंतु सुखीनः

मनुष्य की अदम्य जिजीविषा ,जीवन जीने की उत्कट अभिलाषा उसे सारे ख़तरों से जूझने और निपटने की हिम्मत देती है ;यह अदम्य लालसा ही है जो जो मनुष्य को अन्य प्रणियों से भिन्न करती है .हमारी संस्कृति ,हमारे संस्कार .हमारी आत्मानुशासन की प्रवृत्ति ,हमारे जीवन को सुरुचिपूर्ण और आकर्षक बनती है .हम इसी मे उठते और आगे बढ़ते हैं .यह सांस्कृतिक धरोहर हमे अपने लोक से मिलता है.जिसका लोक जितना समृद्ध होगा उसका आभिजा
त्य ..उतना ही सशक्त होगा सामर्थ्य वान होगा ..लौकिक जीवन हमे आस्था के गंगा जल मे अवगाहन कराता है ,हमारी आस्था ही हमारी उर्जा है शक्ति है .इसके अभाव मे हम बहुत हल्के और कमजोर होते हैं .पर यह आस्था किसी देवी देवता के प्रति नही .मनुष्य और मनुष्यता के प्रति होना चाहिए ...आस्था के मार्ग पर भटकने का अर्थ है मनुष्य जीवन के लक्ष्य से भटकना .सबसे जाड़ा ज़रूरी है की हमारी आस्था और प्रतिबद्धता अपने प्रति हो .मनुष्य के प्रति हो .परिवार और समाज के प्रति हो .धन ,धर्म पद प्रतिष्ठा मान सम्मान जाति ये सभी दूसरे नंबर पर आते हैं .
सर्वे भवंतु सुखीनः सर्वे संतु निरामाया की हमारी कल्पना तभी साकार होगी ..

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