समाचार जगत से जुड़े मित्रों संपादक महोदयों से
क्षमा याचना सहित एक कथा.(यह इस लिए की मेरे तमाम संपादक मित्रों में से यह
कथा किसी की नहीं है कृपया किसी से न जोड़ें)
एक संपादक महोदय ने एक समाचार पत्र का संपादन ४० साल किया /लगभग ७० वर्ष की अवस्था में उन्हें सेवा निवृत्त किया गया .विदाई दी गई /उसी दिन उनके नाम एक पठाक का पत्र आया जिसकी इबारत कुछ इस प्रकार थी /
प्रिय संपादक महोदय ,मै आपके समाचार पत्र का
न
एक संपादक महोदय ने एक समाचार पत्र का संपादन ४० साल किया /लगभग ७० वर्ष की अवस्था में उन्हें सेवा निवृत्त किया गया .विदाई दी गई /उसी दिन उनके नाम एक पठाक का पत्र आया जिसकी इबारत कुछ इस प्रकार थी /
प्रिय संपादक महोदय ,मै आपके समाचार पत्र का
न
ियमित
पाठक हूँ /आप नए नए संपादक बने थे तबसे ही मै पढ़ रहा हूँ /आप की सामयकी
तथा सम्पादकीय बड़ी सटीक हुआ करती थी ,आप ने बड़े लगन से पत्र की सेवा की
/,एक सवाल का उत्तर दे सकें तो जाते जाते दे दें/इन ४० सालों में आप ने रोज
ही सम्पादकीय लिखी कभी नागा नहीं किया ,क्या आप कभी अवकाश पर नहीं गए ,कभी
आप के घर कोई काम नहीं पड़ा ,क्या आप कभी बीमार नहीं पड़े ...!!!!उत्तर में
संपादक जी ने लिखा ..प्रिय पठाक आप के इस प्रश्न का उत्तर मै आज दे सकता हूँ क्यों की मै सेवा निवृत्त हो चुका हूँ /संपादक बनाने से पहले मै उप संपादक था एक दिन संपादक महोदय १० दिनों के लिए अवकाश पर गए थे ,बड़े ही इमानदार और सज्जन थे उन्होंने मुझे समझा दिया था की सम्पादकीय सोच समझ कर रोज लिखना ,मै बिना नागा उनकी आज्ञा का पालन करता रहा ,इस बीच मेरे लेखन की प्रशंसा हुई ,पत्र का पाठक वर्ग भी बढ़ा/लौट कर जब संपादक महोदय आये तो मालिक ने उन्हें सेवा से निकाल दिया ...जब कम खर्च में अच्छा संपादक मिला है तो आप की कोई जरूरत नहीं /मै उसी दिन सावधान हो गया था ,कभी कंही गया तो १० .१० दिन का अग्रिम सम्पादकीय लिखकर रख जाता था /मैंने कभी अपने सहायक को मौका ही नहीं दिया /सच कहूँ तो मै डरपोक था /अब सच कहने से मेरा क्या बिगड़ेगा ..इसलिए कह दिया
संपादक जी ने लिखा ..प्रिय पठाक आप के इस प्रश्न का उत्तर मै आज दे सकता हूँ क्यों की मै सेवा निवृत्त हो चुका हूँ /संपादक बनाने से पहले मै उप संपादक था एक दिन संपादक महोदय १० दिनों के लिए अवकाश पर गए थे ,बड़े ही इमानदार और सज्जन थे उन्होंने मुझे समझा दिया था की सम्पादकीय सोच समझ कर रोज लिखना ,मै बिना नागा उनकी आज्ञा का पालन करता रहा ,इस बीच मेरे लेखन की प्रशंसा हुई ,पत्र का पाठक वर्ग भी बढ़ा/लौट कर जब संपादक महोदय आये तो मालिक ने उन्हें सेवा से निकाल दिया ...जब कम खर्च में अच्छा संपादक मिला है तो आप की कोई जरूरत नहीं /मै उसी दिन सावधान हो गया था ,कभी कंही गया तो १० .१० दिन का अग्रिम सम्पादकीय लिखकर रख जाता था /मैंने कभी अपने सहायक को मौका ही नहीं दिया /सच कहूँ तो मै डरपोक था /अब सच कहने से मेरा क्या बिगड़ेगा ..इसलिए कह दिया
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