Thursday 24 November 2011

मन दर्पण गया टूट /

कोल्हू घानी सरसों पानी
कहता सब की राम कहानी
करलो मन मजबूत  /
स्नेह घरोंदा हरपल ढहता
इक्षा चना भर में भुन्जता
करम पछोरे सूप /
रद्दा रद्दाजमा अँधेरा
उजड़ा कैसे रैन बसेरा
आशा गूलर फूल/
बीता बीता धूप सरकती
संशय मकड़ी जाला बुनती
कंही हो गयी चूक /
मद्धिम मद्धिम दाह सुलगता
घर के भीतर का घर ढहता
कंहाँ  हो गई चूक /
बरसों की यह कठिन तपस्या
प्यार  समर्पण बनी समस्या
कैसे हो गई चूक /
कैसे कोई खुशियाँ बांटें
करनी भरनी काटें छांटे
थक कर हो गया चूर/
इक बंजारा ब्यथित खड़ा है
खेल नियति का जटिल बड़ा है
दुःख का तक्षक नित प्रति डंसता
ओंठ न कोई ऐसा दिखता
जहर जो लेता चूस /
धीर पुरनिया कटता लुटता
अपने आँगन रोज घिसटता
हिल गई उसकी चूल /
पत्ता पत्ता पीला पड़ गया
अंजुरी चेहरा थाम्हे रह गया
मन दर्पण गया टूट /   
 



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