Thursday 24 November 2011

kauaa mama

कौवा मामा आम गिरावो हम तुम दोनों खायेंगे
चलो बजार लायेंगे दुल्हन कोने में बैठाएंगे /
कौवा बैठा पेड़ पर फुलवा पहुंची दौड़ कर
बड़ी चाव से खड़ी निहारे देवता पुरखा सभी पुकारे
मनोभाव की सरबस मारआँखों से टपकती लार
... हाथ जोड़ कर बोली फुलवा कौवा मामा आम गिरावो
हम तुम दोनों खायेंगे चलो बजार लायेंगे दुल्हन
कोने में बैठाएंगे /
पना अमावट सपन भये सब कोइलासी नही मिलती
गिरी कटुहिली बदा न होती मुनियाँ दिन भर रोती
मंहगा महंगा आम बिक रहा कैसे हम चख पायें
दस बीघा का सोन बगीचा एक आम नहीं खाए
कौवा मामा आम गिरावो हम तुम दोनों खायेंगे
चलो बजार लायेंगे दुलहन कोने में बैठाएंगे
एक कटुहिली चोंच दबाये कौवा था कुछ ऐंठा
बड़े शान से निरख रहा था एक दल पर बैठा
सहज भाव से बोली फुलवा मामा कुछ तो बोलो
टुकुर टुकुर क्या देख रहे हो अपना मुह तो खोलो
अपनी इस गुमसुम चुप्पी काराज कोई बतलाओ
तुम्हरी बोली बड़ी मधुर है कोई गीत सुनाओ
कांव कांव कर बोला कौवा आम गिरा धरती पर
झट से लेकर भागी फलवा पैर धरे निज सर पर
भाग रही थी ऐसे जैसे सरबस मिला सहज था
थी प्रसन्न कुछ ऐसे जैसे जीवन सफल हुआ था
जोर जोर चिल्लाई फुलवा कौवा मामा आम गिरावो
हम तुम दोनों खायेंगे चलो बजार लायेंगे दुलहन ............../
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· · · November 17 at 6:27am

    • Hemant Kumar Bahut achchha geet Saroj ji..hardik badhai...
      November 17 at 9:24am ·
    • Poonam Srivastava Sundar balgit...
      November 17 at 10:35pm ·
    • Saroj Mishra sabhi bandhuon ko jinho ne padha aabhar sraha ..dhanybad hemant ,poonam ,pragya ko vishes
      November 20 at 11:35am ·
    • Divikramesh Ramesh ’दस बीघा का सोन बगीचा एक आम नहीं खाए’ जॆसी सशक्त ऒर मार्मिक पंक्ति वाली इस
      कविता की एक खूबी यह भी हॆ कि अब मामा के दायरे में कॊवा जी भी आ गए हॆं ।
      कॊवे के प्रति यह संवेदनशील दृष्टि भी केवल पशु-पक्षियों के नाम मात्र से
      बिदकने वालों को रास आएगी, ऎसा विश्वास हॆ । शेष फिर । 2011/11/17 Saroj
      November 2

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