Sunday 27 November 2011

जो है उससे बेहतर चाहिए ;सन्दर्भ स्त्री समाज

जो है उससे बेहतर चाहिए ;सन्दर्भ स्त्री समाज
आधुनिक औद्दोगिक युग ने हमें विचार धाराएँ दीं,विश्वयुद्ध भी दिए , हमारी ब्यवस्था जागरूक होकर सोचने लगी और मनुष्य विरोधी विचार धारा का विरोध होने लगा/ ,आज हम उत्तर -आधुनिक समाज कहला रहे हैं, गरीब, विकासशील देश इंडस्ट्री की स्टेज पर हैं ,विकसित इलेक्ट्रानिक क्रांति से गुजर कर कन्स्मंसा के रहस्यों को खोलते हुए एक बनावटी ग्लोबलाईजेसन की बात कर रहे हैं ,विज्ञान और टेक्नालोजी के सफलतम चरम पर एक एंटीक्लाइमेक्स सवाल तो पूरी बैस्विक मानवीय परिस्थितियां उठा रहीं हैं कि ग्लोबलिजेसन दरअसल  किसका है,गरीबी का, अन्याय का, या युद्ध का/ सारे तथ्य एक सच्चाई तो बयान कर ही रहे हैं कि रंग, जाति, नस्ल और स्त्री समुदाय को लेकर हम अभी भी कबीलाई ही  हैं, और आधुनिकता जो कि खुद ही एक विचार है,उसकी संस्कृति पैदा नहीं हुई ,वह परीक्षण के दौर से गुजर रहा है/हमारा सम्पूर्ण
विकास,  विनाश  कि शक्ल में सामने खड़ा  है / भारत जैसे विकाश- शील और बहुवच- नीय समाज के सन्दर्भ में यह सच्चाई और भी खतरनाक है ,जाति, धर्म, सप्पम्प्र्दय के झगड़ों पर न्यायपालिका हस्तक्षेप करती है किन्तु स्त्रीयों के शोषण , दोहन, प्रतारणा के प्रकरण हमारी रूढिगत मानसिकता के कारण अँधेरे में ही हैं / इस बीच स्त्री जादा उच्सृन्खल भी हुई है ,मिडिया ओरिएनटेड इस दौर में मिलने वाली खबरें बर्बरता से होड़ ले रहीं हैं /क्या करना होगा,      

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