Saturday 19 November 2011

फिर चुनाव  का बिगुल बज गया
दूरंदाजी तीर ऐसी बंगला कार मेबैठे समझें सब की पीर
कितनी समझ बढ़ गयी /
चढ़ा चुनावी रंग पड़ी है हर कूएं में भंग
भागते नेता चारो ओर मचाते ताल मेल का शोर
दांव पर कुर्सी लग गई /
बो रहे झूठ बँटाते फूट चल रहे कपट नीति के कूट
दिन करे नैतिकता की बात तोड़ते मर्यादा हर रात
 झूठ परवान चढ़ गई /
 धर्म की ब्याख्या करते रोज नोचते नैतिकता को खोज
जाति की राजनीति बेजोड़ राष्ट्र की निष्ठा डाले तोड़
शर्म बेशर्म हो गई /    
फिर चुनाव  का बिगुल बज गया
दूरंदाजी तीर ऐसी बंगला कार मेबैठे समझें सब की पीर
कितनी समझ बढ़ गयी /
चढ़ा चुनावी रंग पड़ी है हर कूएं में भंग
भागते नेता चारो ओर मचाते ताल मेल का शोर
दांव पर कुर्सी लग गई /
बो रहे झूठ बँटाते फूट चल रहे कपट नीति के कूट
दिन करे नैतिकता की बात तोड़ते मर्यादा हर रात
 झूठ परवान चढ़ गई /
 धर्म की ब्याख्या करते रोज नोचते नैतिकता को खोज
जाति की राजनीति बेजोड़ राष्ट्र की निष्ठा डाले तोड़
शर्म बेशर्म हो गई /    

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