Friday 2 December 2011

संसद हो रही भंग /

नेताका सन्देश सुन गाँव हो गया दंग
होंगे नए चुनाव फिर संसद हो रही भंग /
संसद की हर कार गुजारी करती है हैरान
बैठा चौपालों में तडपे नंगी देह किसान /
जरा सोचते तो चुप रहते करते नहीं बवाल
अपनी कुंठाओं में डूबे कार दिया देश हलाल /
पर्त पर्त जम गई धूर्तता ईर्ष्या ठाँव कुठाँव
जाने कितने कपट फले हैं राजनीति के गाँव /
 चवपालों में सोचते माथे धर कर हाथ 
ऐसी  बिकट समस्या आगईबुद्धि न देती साथ /
सबसे बड़ी समस्या भैया वोट किसे हम देंगे
नाग नाथ और सांपनाथ में फिर से दंगल होंगे /.......क्रमशः ..कल

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