Tuesday 13 December 2011

रेल का सामान्य डिब्बा और भारतीय प्रजातंत्र

रेल का सामान्य डिब्बा और भारतीय प्रजातंत्र
भारतीय प्रजातंत्र ,भारतीय रेल के सामान्य डिब्बे की तरह है ,ठसा ठस भरा डिब्बा जब उसमेकिसी नए स्टेशन पर कोई भी नई सवारी घुसती है तो पहले से बैठे लोग उसे बैठने नहीं देते ,काफी जद्दो जहद के बाद वह भी किसी तरह उसी में सेट हो जाता है ,लेकिन अगले स्टेशन पर वह भी नई सवारी को बैठाने नहीं देता ,फिर वही घूसम पैजार ,वह भी सेट हो जाता है .यही कहानी दुहराई जाती रहती है ,लोग चढ़ते उतरते रहते हैं /अब लोंगो ने एक तरीका सीख लिया है जो बड़ा मुफीद है ..इसे ऐसे समझा जा सकता है .....एक सज्जन अपने परिवार के दस सदस्यों के साथ डिब्बे में बैठे थे ,कोई नया परिवार आया उसे किसी भी हालत में बैठने क्या घुसने नहीं दे रहे थे /मामला बिगड़ गया नए सदस्यों में एक जवान लड़का था उसका धैर्य डोल गया उसने सज्जन को एक झन्नाटे दार झापड़ रसीद कर दिया सज्जन बोले .मुझे मारा तो मारा मेरी बीबी को मारा तो ठीक नहीं होगा युवक ने उन्हें भी एक दे दिया .अब सज्जन बोले अभी माफ़ कर रहा हूँ मेरे बेटे को मारा तो..इतने में युवक ने बेटे को भी एक रसीद कर दिया ,इस प्रकार जब सारे सदस्य पिट गए तब सज्जन बोले अब बैठ जाओ /गाड़ी चली ,कुछ देर बाद उनकी मित्रता भी हो गई /इसी बीच किसी ने मजाक में पूछ दिया की जब बैठाना ही था तो सभी को क्यों पिटवाया ? सज्जन ने मासूमियत से कहा ऐसा नहीं होता तो बाद में सभी मेरा मजाक उड़ाते /यही हो रहा है सारी हदे पार करके ही लोग साथ रहते हैं शांत रहते हैं

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