Monday 19 December 2011

ved mantr ..contd 5

मित्रों शुभ प्रभात ,एक और खूब सूरत दिन ईश्वर ने हमें दिया  हम उसके आभारी हैं /
अभी तक आप ने अपने लिए प्रति दिन किये जाने वाली प्रार्थना पढ़ा /कर्तब्य १/२ अब आप ईश्वर के सम्बन्ध में आप को क्या करना चाहिए पढ़े -कर्तब्य -३ ..उपस्थान मन्त्र
यजुर्वेद ३५/१४...
ओम उद्वयं तमस्परी स्व:पश्यंत /उत्तरम देवं देवत्रा सूर्यमगन्म जयोतिरुत्त  मम //१//अर्थात -- हम अविद्या अंधकार से रहित ,सुख स्वरूप ,प्रलय के पश्चात् भी रहने वाले देव,दिब्य गुण युक्त सर्वोत्तम के आत्मा को जानते हुए उच्च्भाव को प्राप्त हों /
यजुर्वेद ३३/३१
ओम उदु त्यं जातवेदसं देव बहन्ति केतवः/दृशे विश्वायसूर्यम //२//अर्थात ...निश्चय ही  उस  वेदों के प्रकाशक चरात्मा ईश्वर को ,सब को दिखलाने के लिए ,जगत की रचना आदि गुण रूप पताकाएं भली भांति दिखलाती हैं /
यजुर्वेद ७/४२
ओं चित्रं देव नामुदगादनीकं चक्षुर्मित्रस्य वरुणस्यागने: /आप्रा द्यावापृथ्वी अन्तरिक्ष सूर्य्य आत्मा जगतस्थुशश्चस्वाहा //३//अर्थात ..वह ईश्वर उपासकों  का,विचित्र बल,वायु,जल और अग्नि का ,प्रकाशक ,प्रकाशक और अप्रकाशक  लोंकों का तथा अन्तरिक्ष का धारक ,प्रकाश स्वरूप जंगम और स्थावर का आत्मा है /कल इसके आगे ...क्रमशः..                     

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