Saturday 3 December 2011

संसद भंग हो रही /२/

संसद भंग हो रही /२/
संबिधान की घोषणा प्रजातंत्र के साज
बदतर इनका हाल है नहीं किसी को लाज
मौसम बिगाड़ा इस कदर पूछे किस से कौन
 मेढक टर टर बोलते दुबकी कोयल मौन
बूढी काकी उठ पड़ी सुन कर यह संबाद
चौतरफा जनता पिसे देश हुआ बरबाद
रोटी के लाले पड़े होते रोज चुनाव
 रौंदी जाती अस्मिता नेता चलते दांव
फैली चर्चा  वोट की बंट गया सारा गाँव
अब तो फिर से होयगें झगडे ठाँव कुठाँव
बिछी विसतें गाँव में फिट करते सब वोट
अब तो फिर से बाँटेंगे ,दारू कम्बल नोट
नेता पहुंचा गाँव जब हवा हो गई मौन
रोटी बेटी पेट की चिंता करता कौन
आगे पीछे घूमते सोहदे हैं बेहाल
रघुवा नेता बनगया कंधे गमछा डाल
चौपालों पर छिड़ गई चर्चा वोट पुराण
जाति धर्म और गोत्र में बंट गए सब के प्राण /क्रमशः /...३


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