Thursday 1 December 2011

सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता

सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता
बार बार आती है मुझको मधुर याद बचपन तेरी
गया ले गया तू जीवन की सबसे मस्त ख़ुशी मेरी
चिंता रहित खेलना खाना और फिरना निर्भय स्वच्छंद
कैसे भूला जा सकता है बचपन का अतुलित आनंद
उंच  नीच का ज्ञान नहीं था छुआ छूट किसने जानी
बनी हुई थी आह झोपड़ी और चिथड़ों में रानी //
किये दूध के कुल्ले मैंने चूस अंगूठा सुधा पिया 
किलकारी किल्लोल मचा कर सूना घर आबाद किया //
रोना और मचल जाना भी क्या आनंद दिखाते थे
बड़े बड़े मोती से आंसू जय माला पहनाते थे //
मई रोई माँ काम छोड़ कर आई मुझको उठा लिया 
लिपट लिपट कर चूम चाट गीले गलों को सुखा दिया //
दादा ने चंदा दिखलाया नेत्र नीर युत दमक उठे
मेरी  हंसती मूर्ती देख कर सब के चेहरे चमक उठे //
पाया मैंने बचपन फिर से बचपन बेटी बन आया
उसकी मंजुल मूर्ती देख कर मुझ में नव जीवन आया //
माँ औ कह कर बुला रही थी मिटटी खा कर आई थी
कुछ मुंह में कुछ लिए हाथ में मुझे खिलाने लाई थी //
मैंने पूछा यह क्या लाई --बोल उठी वह माँ... काओ
हुआ प्रफुल्लित ह्रदय खुसी से मैंने कहा तुम्ही खाओ //
पाया मैंने बचपन फिर से बचपन बेटी बन आया
उसकी मंजुल मूर्ती देख कर मुझ में नव जीवन आया  //

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